आषाढ़ पूर्णिमा- धम्म चक्र दिवस

Jul 26, 2021 - 21:49
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आषाढ़ पूर्णिमा- धम्म चक्र दिवस

हाल ही में भारत ने ‘अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ’ (IBC) के साथ साझेदारी में 24 जुलाई, 2021 को ‘आषाढ़ पूर्णिमा- धम्म चक्र दिवस 2021’ का आयोजन किया। इस दिवस को बौद्धों और हिंदुओं द्वारा अपने गुरुओं के प्रति श्रद्धा को चिह्नित करने हेतु गुरु पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है।

गुरु पूर्णिमा

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, गुरु पूर्णिमा आमतौर पर आषाढ़ में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। यह दिवस महर्षि वेदव्यास को समर्पित है, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने पवित्र हिंदू पाठ, वेदों का संपादन किया और 18 पुराणों, महाभारत और श्रीमद् भागवत की रचना की।

बौद्धों के लिये यह त्योहार भगवान बुद्ध के पहले उपदेश का प्रतीक है, जो उन्होंने उत्तर प्रदेश के सारनाथ में इसी दिन दिया था। साथ ही इसे मानसून की शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता है।

प्रमुख बिंदु

आषाढ़ पूर्णिमा- धम्म चक्र दिवस

यह दिवस बुद्ध द्वारा अपने पाँच पहले तपस्वी शिष्यों को दिये गए उपदेश का प्रतीक है। उन्होंने ज्ञान प्राप्ति के बाद दुनिया को अपना पहला उपदेश दिया था।

यह दिन वाराणसी के पास वर्तमान सारनाथ में 'हिरण पार्क', शिपटाना में भारतीय सूर्य कैलेंडर में आषाढ़ महीने की पूर्णिमा के दिन, संघ की स्थापना का प्रतीक है। इसे श्रीलंका में एसाला पोया तथा थाईलैंड में असान्हा बुचा के नाम से भी जाना जाता है।  बुद्ध पूर्णिमा या वेसाक के बाद बौद्धों के लिये यह दूसरा सबसे पवित्र दिवस है।

धम्म चक्र-पवट्टनसुता (पाली) या धर्म चक्र प्रवर्तन सूत्र (संस्कृत) का यह उपदेश धर्म के प्रथम चक्र के घूमने के नाम से भी विख्यात है और चार आर्य सत्य तथा अष्टांगिक मार्ग से निर्मित है।

    • चार आर्य सत्य:
      • दुख संसार का सार है।
      • हर दुख का एक कारण होता है- समुद्य
      • दुख का नाश हो सकता है-निरोध।
      • इसे ‘अथंगा मग्गा’ (अष्टांगिक मार्ग) का पालन करके प्राप्त किया जा सकता है।
    • अष्टांगिक मार्ग:

भिक्षुओं के लिये वर्षा ऋतु प्रवास (वर्षा वास) भी इस दिन से ही शुरू होता है जो जुलाई से अक्तूबर तक तीन चंद्र महीनों तक चलती थी, इसके दौरान वे एक ही स्थान पर रहते थे, आमतौर पर उनके विहार/चैत्य गहन ध्यान के लिये समर्पित होते थे। .

गौतम बुद्ध

उन्हें भगवान विष्णु (दशावतार) के दस अवतारों में से आठवाँ अवतार माना जाता है। उनका जन्म सिद्धार्थ के रूप में लगभग 563 ईसा पूर्व लुंबिनी में हुआ था और वे शाक्य वंश के थे। गौतम बुद्ध ने बिहार के बोधगया में एक पीपल के पेड़ के नीचे बोधि (निर्वाण) प्राप्त किया।

बुद्ध ने अपना पहला उपदेश उत्तर प्रदेश में वाराणसी के पास सारनाथ गाँव में दिया था। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में 80 वर्ष की आयु में 483 ईसा पूर्व में उनका निधन हो गया। इस घटना को महापरिनिर्वाण के नाम से जाना जाता है।

भारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का योगदान:

अहिंसा की अवधारणा बौद्ध धर्म का प्रमुख योगदान है। बाद के समय में यह हमारे राष्ट्र के पोषित मूल्यों में से एक बन गई। भारत की कला एवं वास्तुकला में इसका योगदान उल्लेखनीय है। सांची, भरहुत और गया के स्तूप वास्तुकला के अद्भुत नमूने हैं।

इसने तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे आवासीय विश्वविद्यालयों के माध्यम से शिक्षा को बढ़ावा दिया। पाली और अन्य स्थानीय भाषाएंँ बौद्ध धर्म की शिक्षाओं के माध्यम से विकसित हुईं। इसने एशिया के अन्य हिस्सों में भारतीय संस्कृति के प्रसार को भी बढ़ावा दिया था।

कोविड-19 के दौरान बौद्ध धर्म की प्रासंगिकता:

बुद्ध की शिक्षा आज भी प्रासंगिक है, आज मानवता कोविड-19 महामारी के रूप में सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रही है। बुद्ध के सिद्धांत मानवता को मज़बूत करते हुए देशों को एक साथ जोड़ते हैं।

आज विश्व के सभी राष्ट्र बुद्ध द्वारा दिखाए गए मानवता की सेवा के मार्ग का अनुसरण करते हुए महामारी के समय में एक-दूसरे का हाथ थामे हुए हैं और एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं। बुद्ध के चार महान सत्य और अष्टांग मार्ग कर्म के सिद्धांत को समझने, विश्व को आरोग्य बनाने तथा इस संसार को एक श्रेष्ठ स्थान बनाने में मदद कर सकते हैं।

बौद्ध धर्म से संबंधित यूनेस्को के विरासत स्थल

नालंदा, बिहार में नालंदा महाविहार का पुरातात्त्विक स्थल, साँची, मध्य प्रदेश में बौद्ध स्मारक . बोधगया, बिहार में महाबोधि विहार परिसर . अजंता गुफाएँ, औरंगाबाद (महाराष्ट्र)

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